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ऐ ज़िंदगी अब मैं तुझ से नाराज़ हो रहा हूँ
मैं ख़ुद को ख़ुद के कँधे पर उठाए ढो रहा हूँ..
तूने इतने दर्द दिए कि अब बिख़र गया हूँ
जो दी थी पहचान अब वो पहचान खो रहा हूँ..
आज वो बहुत याद आ रहे बस ये सोच रहा हूँ
अकेला हूँ बेबस हूँ और मैं बेहिसाब रो रहा हूँ..
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