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मेरी रश्क-ए-क़मर जब तू मुझे बाहों में समाती है
देख इसे हवा भी हमारे बीच गुज़रने से शर्माती है..
तेरी आग़ोश में सर रख ऐसे मदहोश हो जाता हूँ
देख इसे चादँनी भी बादलों में हया से मुँह छुपाती है..
तेरी मोहब्बत का सुरूर कुछ यूँ मेरे ऊपर चढ़ा है
तू सियाह रातों में मेरी आँखों से नींदे चुराती है..
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