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वो ज़बान पर लफ़्ज़-ए-इंकार लिए फिरते हैं
जिससे टूटे दिल वो हथियार लिए फिरते हैं..
जिस हाथ को पकड़ जीने की चाह थी मेरी
उस हाथ में वो ख़ंजर-ए-खूंखार लिए फिरते हैं..!!
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हसरत-ए-दीदार को जिसके तरसती है मेरी आँखें
वो आजकल निगाहों में कटार लिए फिरते हैं..
हम जिसके क़दमों में फूलों जैसे बिछ जाना चाहते थे
वो उन पैरों से दिल कुचलने का क़रार लिए फिरते हैं..!!
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सुन यार मेरे तेरी नफ़रत को सिर आँखों पर रखता हूँ
हम तो आज भी दिल में दुआ हज़ार लिए फिरते हैं..
ये तक़ाज़ा-ए-तहज़ीब ही है इस शायर बनारसी का
हम तो मैदान-ए-जंग में भी प्यार लिए फिरते हैं..!!
#तुष्य
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