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ये अश्क-ए-मुसलसल नींद कामिल नहीं होने देता
मेरे अधूरे ख़्वाबों को कभी तामील नहीं होने देता..
तेरा तसव्वुर कुछ इस तरह मेरी नींद पर भारी है
ये दिल आँखों में किसी को शामिल नहीं होने देता..
तेरी यादें ही बस एक सहारा है मेरी तन्हाई का
तेरे चहरे को इन आँखों से नाज़िल नहीं होने देता..
ये सियाह रात नाम लेती ही नहीं ढलने का
नींद आती है तो पलकों को काहिल नहीं होने देता..
अगर तू चाहे तो मेरी आँखों को मुक़फ़्फ़ल कर दे
तेरा तख़य्युल इस इश्तियाक़ को कम नहीं होने देता..
अब होश-ओ-हवास खोने लगा है ये राहुल बनारसी
तेरा हुस्न मेरी नींद को आँखों में दाख़िल नहीं होने देता..
#तुष्य
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