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वो कुछ इस तरह उमड़ती घुमड़ती मेरी ज़िंदगी में आई थी
जैसे तपती ज़मी की प्यास बुझाने बादलों ने ली अंगड़ाई थी..
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उसकी बातें मेरे दिल-ओ-दिमाग़ पर कुछ इस कदर छाई थी
जैसे शाम की धुँधलाहट में चिराग़ की रोशनी जगमगाई थी..
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उसकी पाकीज़ा-सीरत में अलग ही रूहानियत नज़र आई थी
जैसे मोहब्बत और इबादत मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में समाई थी..
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या
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