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अल्फ़ाज़ों की जुगलबंदी से कहीं ऊपर और ज़्यादा है..
मेरी लिखीं लफ़्ज़-ए-क़लम थोड़ी औरों से अलाहदा है..
नज़्म-ए-दिल का गहराव बेहद गहरा और कुशादा है..
जुबाँ-ए-अल्फ़ाज़ ने बदला मेरी ग़ज़लों का क़ाएदा है..
हिन्दी-उर्दू के शर्फ़-ए-मिलन का मिला मुझे फ़ायदा है..
अपनी नज़्मों में इन शब्दों को ओढ़या मैंने लिबादा है..
पढ़ने वालों के दिल में उतर जाऊँ ऐसा मेरा इरादा है..
लिखता रहूँगा ऐसी ख़ूबसूरत नज़्में ऐसा मेरा वायदा है..
ज़्यादा हसीन ख़्वाब नहीं देखता मेरा यक़ीन-ए-सादा है..
अपने ग़म-ए-हयात को पिरो लिखा अपना मुशाहिदा है..!!
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