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होने लगा मैं रुख़्सत तो उसने हाथ पकड़ लिया
ना जाओ कहकर मुझे अपनी बाँहों मे भर लिया..
अपनी बेबसी पर आँसू बहाते किया था अलविदा
जाते-जाते चेहरा उसका दिल में तस्वीर कर लिया..
वो आसमाँ में उड़ते हुए खुल के जीना चाहती थी
ख़ुदा क्यों तूने ज़िंदगी का बंद दरवाजा कर लिया..
वो ख़ामोशी से चमन-ए-आलम से रुख़्सत हो गई
उसके जाते ही मैं भी अंदर ही अंदर मर लिया..
तन्हाई का दर्द लिए ग़म-ए-जुदाई में यूँ डूबा हूँ
खुशियों ने भी मेरी ज़िंदगी से किनारा कर लिया..!!
#तुष्य
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