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आसमां में इक नव परिंदा, उड़ रहा तो जरुर है।
कह रहा पंखों में जान मेरे, पर अभी सफर तो दूर है।।
देखता है जब जमी पर, तेज पंखों को हिला कर।
मै हवा को चिरता हूँ हुआ इसका थोड़ा तो गुरूर है।।
छोड़ तिनके का घोसला, अपनो से कर फासला।
सोचता मन ही मन मंजिल मेरी, नव उमंगों से तो चूर है।।
सफर में कुछ संगी साथी, रास्ते में आयी आंधी।
डरा गिरने से तब, अपनों की यादें आयी तो जरूर है
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