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इक रोज़ तुम मिले

ज़िन्दगी संवर गई

दिल में फूल खिले

सूने जीवन में बहार छा गई

 

तुम मिले एक 

हसीन ख़्वाब की तरह

मेरी नब्ज़ में धड़के

जज़्बात की तरह 

 साँसों में महकने लगे 

 चंदन की तरह

वक़्त की बूँदों को…

अमृत की तरह

घूँट घूँट पीने लगी…

 

नई उमंग से जीने लगी  

वक़्त वहीं थम सा गया…

समुद्र पर तैरता सूरज

अस्त होना भूल कर  

हिम की तरह जम गया 

लहरों का उन्माद 

देखते ही देखते थम गया

सुरमई साँझ होने लगी

मदहोशी हवाओं में बहने लगी…

  

उल्फ़त की राह में

ख़ामोशी गुनगुनाने लगी

रुहानी बयार बह कर 

मेरी रगों में घुलने लगी

गर्म साँसे तुम्हारी

मेरे जिस्म में चलने लगीं 

तुम को पा कर

ख़ुद को खोने लगी…तुम्हारी होने लगी!

 

डॉ. अपर्णा प्रधान

स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित


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