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कितनी दरारें हैं
दिल के दरो दीवार पर ...
फिर भी चांद
अपनी यरकानी
नज़रों से
मेरे मन की ज़मीन को
ताकता रहता है चुपचाप...
दरारों से
पुरवा के आखरी
झोंके के साथ ...
चंद उम्मीदें
पुरनम आंखों में
उतर आती हैं...
मगर पता नहीं
फिर कोई हवा का झोंका
सारी बंदिशे तोड़
उम्मीदों को तार तार कर
लौट जाता है ...
धूसर आकाश में
चांद यूं छुप गया...
जैसे
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