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कैसे भूल जाए हम...
बचपन में पिता को खोया, माँ को भी इक दिन खोना था।
हर कदम भेदभाव सहा, संघर्षो से गहरा नाता था।
संपूर्ण जीवन ही जिनका, भरा हुआ संघर्षो से था।
वो मानव नहीं... महामानव है!
कैसे भूल जाए हम...
कक्षा के बाहर बैठाकर, पढा़या वो गया था।
पानी भी नसीब न हुआ, घडे़ से ऊँचाई से पिलाया था।
लोगों के द्वारा जिनकी, परछाई को भी अशुभ माना जाता था।
वो मानव नहीं... महामानव है!
कैसे भूल जाए हम...
संघर्ष व बलिदान जिनका, बहुजनों के ख़ातिर था।
चार बेटे खोकर भी, आँसु आँखों में समेटे लडा़ था।
सर उठाकर जीने का हक, तब जाकर दिला पाया था।
वो मानव नहीं... महामानव है!
कैसे भूल जाए हम...
अधिकारों से वंचित महिलाऐं, सफर जिनका घर की दहलीज़ तक था।
उन लाचार महिलाओं का, पिंजरे में कैद पंछी के जैसे रहना था।
उस महामानव ने इक दिन, महिलाओं को पिंजरे से आजाद कराया था।
वो मानव नहीं... महामानव है!
कैसे भूल जाए हम...
मरा नहीं वो अब तक, आज भी है वो जिंदा।
रहेगा अम्बेडकरवाद व संविधान, तब तक रहेगा वो जिंदा।
विचारों, किताबों, मूर्तियों, संसद में, खास बात लोगों के दिलों में है वो जिंदा।
वो मानव नहीं... महामानव हैं!
~Dk Megh.. (दिलखुश मेघवाल)
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