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चांद जो ज़मीं पे उतर आया है,
फ़क़त ये मेरे इश्क का सरमाया है।
यहां इश्क के नशे में हैं चूर सभी,
क्या चाँद भी मशग़ूल होने आया है?
क़मर-ए-फलक से बेहतर, है माहताब मेरा,
सेहरा में, तिश्नगी में, तू ही है आब मेरा।
क़मर-ए-फलक से बेहतर, है माहताब मेरा...
रहता है रश्क में वो,
आया है अर्श से जो।
महबूब जैसा मेरा,
मिलता नहीं किसी को।
माहताब के मुताबिक,
जब
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