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है विजय अटल कि तुम बढ़े चलो,
जय का यह प्रहर कि तुम बढ़े चलो।
नसों में खौलती नदी,
दृढ़ निश्चय है यदि,
कृत संकल्प तृण मंझधार भी तिराएगा,
वो वीर क्या, जो ना पार लगा पाएगा?
पी जाओ दावानल कि तुम बढ़े चलो,
है विजय अटल कि तुम बढ़े चलो।
यहां गहरा अंधकार है,
तमस् के विकार हैं।
तिमिर विस्तारित ना डरा पाएगा,
तम तुम को नहीं निगल पाएगा।
है श्वास में अनल कि तुम बढ़े चलो,
है विजय अटल कि तुम बढ़े चलो।
जय का यह प्रहर कि तुम बढ़े चलो।
नसों में खौलती नदी,
दृढ़ निश्चय है यदि,
कृत संकल्प तृण मंझधार भी तिराएगा,
वो वीर क्या, जो ना पार लगा पाएगा?
पी जाओ दावानल कि तुम बढ़े चलो,
है विजय अटल कि तुम बढ़े चलो।
यहां गहरा अंधकार है,
तमस् के विकार हैं।
तिमिर विस्तारित ना डरा पाएगा,
तम तुम को नहीं निगल पाएगा।
है श्वास में अनल कि तुम बढ़े चलो,
है विजय अटल कि तुम बढ़े चलो।
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