
Share0 Bookmarks 34 Reads0 Likes
कोई दरवाज़े पे खड़ा है
कभी कभी
कमरे में बैठे-बैठे महसूस करता हूँ
एक रोज़ तंग आकर, दरवाज़ा खोलता हूँ
अब आज़ाद है परछाईं तेरी
अपनी आहट से बोलता हूँ
फिर दरवाज़ा बंद कर भूल जाता हूँ
अपनी आवाज़
हर रोज़, दोहराता हूँ ख़ुद को
बार बार
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments