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क्यों दुसरों के भरोसे बैठे रहते हो तुम

Devender KumarDevender Kumar April 12, 2023
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क्यों दुसरों के भरोसे बैठे रहते हो तुम 

क्यों सदियों से तिरस्कृत जीवन जीते हो तुम 

क्यों दुसरों के नियमों का बोझ ढोते हो तुम 

क्यों बार बार झुकते हो तुम ।

बनी है सम्यता तुमसे 

बने है समाज तुमसे 

बने है सृजक सृजनकार तुमसे 

बनी है यह धरा उर्वर तुमसे 

क्यों भारत पाकिस्तान हो जाते हो तुम 

क्यों हिन्दु मुसलमान हो जाते हो तुम 

क्यों अपनी खाल में भेड़िये छुपाते हो तुम 

क्यों खलों को नायक बनाते हो तुम 

बनती है रोटी तुमसे 

बनती है अगीठी तुमसे 

बनती है लार पाचक तुमसे 

बनते है परमेश्वर धनवान तुमसे 

जो तुम मिल जाओ तलिसम ए खुदा तोड़कर 

परमेंश्वर हो जाओ तुम ये जानकर 

न गीता न कुरान न किताब कोई 

लिख दे जो तु अपने खुन पसीने से 

धरती के सीने पर समता का आधार कोई 

कहां पैदा हो फिर तुमसे ही हुकमुरां कोई 

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