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क्यों दुसरों के भरोसे बैठे रहते हो तुम
क्यों सदियों से तिरस्कृत जीवन जीते हो तुम
क्यों दुसरों के नियमों का बोझ ढोते हो तुम
क्यों बार बार झुकते हो तुम ।
बनी है सम्यता तुमसे
बने है समाज तुमसे
बने है सृजक सृजनकार तुमसे
बनी है यह धरा उर्वर तुमसे
क्यों भारत पाकिस्तान हो जाते हो तुम
क्यों हिन्दु मुसलमान हो जाते हो तुम
क्यों अपनी खाल में भेड़िये छुपाते
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