पीड़ा's image
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किसी से प्रेम करना उतना ही कठिन है जितना आसान किसी की परवाह करना है। हम किसी की परवाह एक मित्र,अपने बच्चे या एक शुभचिंतक के भाव से करते हैं उसकी हर इच्छा पूर्ण करना, लाड से उसको मनाना ये सब क्रियाएं उसको हमारी आदत लगा देती हैं... ये केवल एक पक्ष की सोच हैं परंतु हम भूल जाते हैं की उस व्यक्ति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा या जब हम चले जाएंगें उनके जीवन से तो वो किस प्रकार से खुद को संभालेंगे? साल भर में डाली गयी आदत एक क्षण में केसे भुलाई जा सकेगी?
श्री कृष्ण ने कहा था कि "किसी व्यक्ति को प्रेम से भरने के बाद उसको छोड़ देना मृत्यु देने के समान है"। ये पाप कभी ना कभी हम सबने ही किया होगा... इसके बाद कुछ लोग घुटन मेहसूस करते हैं और रोज पीड़ा से गुजरते हैं जब वह उस छोड़े गए व्यक्ति को सामने देखते हैं भीड़ में खोए हुए एक खुशमिजाज नकाब लगाए हुए... सच मानिए ये पीड़ा उस मृत्यु के समान है जेसे किसी भारी चीज के नीचे दबे रहने से तड़प के साँसों का निकलना। 

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