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कैसे जिया और क्या-2 किया, ये नहीं पूछने वाला है I
अंत में तूने क्या पाया, वही सबको दिखने वाला है II
कार्य प्रक्रिया जटिल भले, परिणाम से सबको मतलब है I
बिना आग भरपूर तपे, सुंदर आभूषण कब है II
इस ज्वाला में गहरा दह ले, सब बुरे भाव को तू पिघला I
कंचन सा फिर चमकेगा, वही प्रिय रूप जग को दिखला II
सब हस्त कंठ पर शोभा दे, तू भस्म का कतरा नहीं बनना I
उस स्वर्णिम आभा को अपना, कहीं कालिख हो जाए वरना II
भर दंभ और विश्वास अटल, है शिरोमणि तू ही आगामी I
चींटी सा हो निरत यत्न, तू भूल जा पिछली नाकामी II
नाकामी के पार ही अब, तुझे असीम नभ भान मिलेगा I
उड़ जोश में भर के पंखों को, तेरी हस्ती को सम्मान मिलेगा II
दीपक शर्मा
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