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दिल का संदूक
आज मैंने मेरे दिल का संदूक खोला
सिवाय दर्द और गम के कुछ भी न मिला
एक नीली सीसी में रखे थे आंसू मेरे
जो बह आए थे आंखों से मेरी
जब बचपन के कुछ सपने पूरे ना हुए
एक काली डिब्बी में बंद थी सिसकियां मेरी
जो नाकामियों ने दी थी तोहफे में कभी
एक पोटली में कोई चीज रखी थी
खोल के देखा था मासूमियत थी मेरी
जो किसी को दिखाई न दी इतने अर्से से
इसलिए पत्थर हो चुकी थी
एक चिट्ठी पड़ी थी उसमें
जो शायद मैंने ही रखी थी
खोल के देखा तो लिखा था
यहां कोई किसी का नहीं
आज मैंने मेरे दिल का संदूक खोला
सिवाय दर्द और गम के कुछ भी न मिला
दीपक
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