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रवि बम्बई शहर में रहता है उसका बेकरी का बिजनेस है वह खुद ही दुकानों दुकानों पर जा कर अपने समानो को बेचता है। रवि की पत्नी का नाम रीमा है। उनके दो बच्चे हैं। जिनका नाम आशुतोष और अंशिका है ; आशुतोष पांचवी कक्षा में पढता है जबकि अंशिका अभी बहुत छोटी है।
रवि का मूल निवास इलाहाबाद है जहां उसके पिता रमेशचन्द्र रहते हैं । एक समय था जब रमेशचन्द्र के पास ठीक ठाक मात्रा में कृषि भूमि थी पर बडे भाई के धोखा देने के कारण, सारी भूमि बडे भाई की हो गयी। उस समय एक कानून प्रचलित था जिसके तहत पिता की मृत्यु के बाद सारी जायदाद का मालिकाना हक बडे बेटे का होता था। अगर बडा बेटा चाहे तो कोर्ट में गवाही दे कर छोटे बेटे को हिस्सा दे सकता था, परन्तु रमेशचन्द्र के बडे भाई ने कोर्ट में उसको पहचानने से मना कर दिया।
उस समय रमेशचन्द्र के पास खाने तक पैसे नहीं थे। तब उन्होंने पडोसी से कुछ पैसे उधार लिए। वे, रवि जो उस समय बहुत छोटा था और पत्नी के साथ इलाहाबाद स्टेशन पहुंचे। जहां से उन्होंने कामायनी एक्सप्रेस ट्रेन पकडी, जो मुम्बई जा रही थी। दो सीट मिली, रवि को सीट न मिलने के कारण रवि अपने पिता के पैरों पर सिर रख कर सो गया।
रमेशचन्द्र को बम्बई में एक कंपनी में काम मिल गया, जिससे उनके परिवार का खर्चा चलने लगा। इस समय रमेशचन्द्र काफी बूढे हो चुके हैं, वे अब इलाहाबाद में ही रहते हैं।
रवि सुबह सुबह उठ कर अपने बेकरी के समानो को गाडी पर लाद रहा था और तभी बोला -
रवि - अंशिका की मम्मी, कुछ बना है कि ना
रीमा( अंशिका की मम्मी) - जी , सिर्फ मोट रोटी बनी है
रवि - देर हो रही है , जो भी बना हो बांध कर दे दो ;खाने का समय नहीं है, दोपहर में खा लूंगा !
रीमा - ठीक है, दो मिनट रूको दे रहीं हूँ ...
रीमा - अरे सुन रहे हो ...
रवि - हूँ,
रीमा - आशुतोष के स्कूल का फीस भरना है
रवि - हाँ, पता है ; पर इस समय पैसा नहीं है
रीमा - वो कह रहा था कि रोज रोज गुरुजी खडा करके फीस मांगते हैं ,जिससे उसे क्लास में शर्मिन्दा होना पडता है!
रवि - हाँ ठीक है , दू चार दिन में जमा कर देते हैं
रवि - अच्छा, अब हम जाते हैं
रवि आठवीं पास है; रमेशचन्द्र उसे और आगे पढाना चाहते थे पर रवि का पढने में मन न लगा ,उसने पढाई छोड़ दी। वह इलेक्ट्रॉनिक का काम सीखना चाहता था तो उसके लिए रमेशचन्द्र ने पैसे दिए, पर इसमें भी रवि का मन न लगा। अंततः उसको भी सीखना बंद कर दिया। अब वह बेकरी के समानो को ही बेचता है।
रवि दुकान दुकान पर जा कर बेकरी के समानो को बेचता ,जो दुकान वाले उससे समान ले लेते वहां से वह प्रफुल्लित हो कर लौटता और जो दुकान वाले उससे समान नहीं लेते वहां से वह निराश होकर लौटता। दोपहर तक सामानों को बेचता रहा , दोपहर में जब उसे भूख लगी तो वह एक छोटे से ढाबे पर जाकर बैठ गया।
उस दुकान पर एक छोटू था, छोटू रवि के पास आया ...
छोटू - क्या चाहिए ?
रवि - कुछ नहीं, बस पानी दे दो
छोटू - हूँ ...
रवि ने मोट रोटी निकाला ,जो रीमा ने दिया था और खाने लगा ...बगल में एक महाशय बैठे हुए हैं , जिनका नाम अर्जुन है ,अर्जुन जिसकी थाली में दो किस्म की सब्जी, रोटी, चटनी ,दाल, चावल सब है ;वही रवि को सूखी रोटी खाते देख दंग रह गए। अर्जुन रवि से कुछ पूछना चाह रहा थे पर पूछ नहीं पा रहा थे। जब रवि अपनी रोटी खत्म करके जाने लगा तो ...
अर्जुन - सुनिए
रवि - हां
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