साम्प्रदायिकता's image
Article3 min read

साम्प्रदायिकता

Deepak ChaudharyDeepak Chaudhary March 2, 2023
Share0 Bookmarks 49694 Reads1 Likes
 संप्रदायिकता का तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर पूरे समाज और राष्ट्र के हितों के विरुद्ध अपने व्यक्तिगत धर्म के हितों को प्रोत्साहित करता है और उन्हें संरक्षण देने की भावना को बल देता है। यह व्यक्ति में सर्वमान्य सत्य की भावना के विरुद्ध व्यक्तिगत धर्म और संप्रदाय के आधार पर द्वेष, ईर्ष्या की भावना को उत्पन्न करता है।

               भारत में संप्रदायिकता का जन्म उपनिवेशवादी नीतियों तथा उनके विरुद्ध संघर्ष के नीतियों की आवश्यकता से उत्पन्न परिवर्तनों के कारण हुआ। इस समय नए विचारों को ग्रहण करने , नए पहचानों तथा विचारधाराओं का विकास करने एवं संघर्ष के दायरे को व्यापक करने के लिए लोगों ने पुरातन एवं पूर्व आधुनिक तरीकों के प्रति आसक्ति प्रकट की, जिसके परिणाम स्वरूप एक नवीन मध्य वर्ग का उदय हुआ। इसी मध्यवर्ग ने 19वीं सदी के विभिन्न धार्मिक सुधार आंदोलन को आगे बढ़ाया। परन्तु यह आंदोलन अपने वर्ग तक ही सीमित रहा, जिससे भारत विभिन्न समुदायों में विभक्त हो गया। भारत में सांप्रदायिकता के विकास के अन्य कारण निम्न है -
1•  20 वीं सदी में भारत में बुर्जुआ वर्ग एवं व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। यह उदय दोनों वर्गों में समान था। सरकारी सेवाओं, व्यवसायों, उद्योगों में दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता से संप्रदायि

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts