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जाति के चमार हो, है न?

Deepak ChaudharyDeepak Chaudhary January 3, 2023
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फरवरी का महीना था सुबह शाम वाली ठंड पड़ रही थी पर इस हल्की-फुल्की ठंड में भी विधानसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा ने माहौल को गर्म कर दिया था। हर नेता रैलियों पर रैलियां किये जा रहा था रैलियों में हर बार की तरह इस बार भी जनता से तरह-तरह के वादे हो रहे थे और जो वोट के ठेकेदार थे वो नेताओं की कौन, कितने बेहतर तरीके से चापलूसी कर सकता है, करने में प्रतियोगिता कर रहे थे।

                मुकेश गौतम जो दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहा था वह भी उस समय कुछ दिनों के लिए गांव आया हुआ था। वह किसी के घर आता जाता नहीं था। उसी समय उसके चाचा जो आर्मी में थे वह भी छुट्टियों पर घर आए हुए थे।

                  शाम को लगभग सात बज रहे थे। मुकेश के चाचा ने कहा - एक लोग से थोड़ा काम है, आओ गांव में चलते हैं। मुकेश भी उनका मान रखने के लिए उनके साथ चला गया। गांव में एक पंडित के दुआरे अलाव जल रहा था वहां सात-आठ लोग बैठे हुए थे जो चुनाव पर चर्चा कर रहे थे। मुकेश के चाचा को जिससे काम था संयोग से वह भी वहीं पर मिल गए वह उनसे बातें करने लगे। वह

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