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ढुंढना पड़ता है..
तुम क्या जानो..!
असली-नकली
शोर-मौन
के बीच
अनकही-अधरंग बिना सावन लौटता बसंत,
युँही नहीं बनती
अधर तक आ
कहने को व्याकुल
मन से परे
बुद्धि को छोड़ बस आत्मा
हाँ बस आत्मा
को छुती वो अमर प्रेम कहानियां...
जहाँ कुछ नहीं होता पाने के नाम पर
फिर भी मधुमास की गीली जमीन पर खिली-खिली मुस्कान लिये
पता नहीं कैसे
रोज जीती हैं
हृदय की वो कभी न मिटने वाली रंगोली के बीच
तुम क्या जानो
प्रेम की वो अविरल....निशानियां.....!
©®
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