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काफी धीमे थे हम प्रेम की आड़ी-टेडी गलियों में
पर तुम्हारा देखना भर ही हमें तेज-तर्रार कर गया
पत्थरों के नसीब में कहां यूं पिघल कर बहना
पर तुम्हारा छुना भर ही हमें तार-तार कर गया
दरख़्त मायूस थे जब पतझड़ के मौसम में
तेरा बंधे बाल खोलना ही बसंत-बाहार कर गया
देश ज
पर तुम्हारा देखना भर ही हमें तेज-तर्रार कर गया
पत्थरों के नसीब में कहां यूं पिघल कर बहना
पर तुम्हारा छुना भर ही हमें तार-तार कर गया
दरख़्त मायूस थे जब पतझड़ के मौसम में
तेरा बंधे बाल खोलना ही बसंत-बाहार कर गया
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