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आँगन में दीवार उठा ली हमने किस नादानी में
अपने घर में आग लगा ली हमने किस नादानी में।
रोज़ महाभारत नफ़रत का मन ही मन में होता है
तलवारों पर धार लगा ली हमने किस नादानी में।
प्रेम-दया का घोंट दिया है हमने गला अचानक ही
सच की भी आवाज़ दबा ली हमने किस नादानी में।
कहते थे इस मुल्क़ में हम सब भाई-भाई जैसे हैं
फिर क्यों गरदन आप कटा ली हमने किस नादानी में।
हालत देख ज़माने की अब लोग बहुत ही रोते हैं
कैसी दौलत आज कमा ली हमने किस नादानी में।
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