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मॉं की दास्तां

Abhishek ChaturvediAbhishek Chaturvedi May 9, 2022
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सब का ग़म में कागज़ पे लिखता हूँ आज सोचा की माँ
तेरी दास्ताँ भी बयान कर दूँ

वैसे तो मेरी हर साँस तेरी रहमतों की मोहताज़ है
मगर मैं आज सबके सामने अपनी जिन्दगी मां के नाम कर दूँ

मैंने अपनी आँखों के सामने जब-जब तुझे बिलखता देखा है माँ तब-तब

अपने दिल को धड़कनें से रोका है
मुझे तो याद नहीं वो मंज़र बचपन का

लेकिन लोगो से में तेरी दांस्ता सुनता आया हूँ, तुझे तकलीफों के बदले लाखों
खुशियां दूं मैं
 माँ में ऐसे लाखो सपने आजतक बुनता आया हूँ

 मैंने सुना है तू
अपने एक बेटे को खो कर टूट सी गयी थी| तब कितनी मन्नतो के बाद ईश्वर ने
मुझे भेजकर तेरी गोद फिर से हरी की थी मां

खुशी से तू फूलसिमटी नहीं थी कहते है,
बार-बार मेरा माथा चूमती थी

सुना है उस वक्त तूने मेरे लिए खाना पीना छोड़
दिया था
मुझे तूने सिने से लगा कर जहाँन से मुह मोड़ लिया था

टूटी-फूटी छतों
पर से जब रातो को पानी टपक था

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