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ऊष्मा
हो गई जो बूंद वाष्पित तब
उस पर रश्मि ताप आरोपित जब
गए पहर बीत आप ही आप
पार हुआ न क्षितिज, शिथिल ताप
रात्रिकाल पहर पार, पुनः बूंद सुंदर निर्मल
पुनः प्रभात आगमन, रश्मि-ऊष्मा स्नेह- विमल
सहलाती रश्मि, उष्मित बूंद, मुस्कुराता गगन
बूंद-रश्मि प्रभा-पानी का नवीन प्रणय गमन
विपिन चंदोला
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