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ये जश्न-ए-आज़ादी मनाऊँ कैसे मैं
मुर्झाए गुलशन को हँसाऊँ कैसे मैं
याँ रास्तों को भेड़ियों ने घेरा हैं
वहशी,दरिंदो को भगाऊँ कैसे मैं
है आसमाँ ख़ौफ़-ओ-ख़तर से ग़म-ज़दा
बहनों, यकीं तुम को दिलाऊँ
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