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कौन किस का अब सगा है
हर क़दम पे तो दग़ा है
प्यार से पाला जिसे वो
नाग-सा डॅंसने लगा है
ज़िन्दगी बस चार दिन की
मौत से क्यों डर लगा है
ख़ुद ही ख़ुद की बन दवा तू
दिल को सब ने ही ठगा है
जो भी आया इक दफ़ा वो
उसको फिर चस्का लगा है
जिसने भी दिल को सगाया
रात-भर फिर वो जगा है
~ सुकेशिनी बुढावने
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