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क्यों जबीं पे शिकन झलक जाती
हाए, ऑंखें मिरी छलक जाती

देख, मौज-ए-सराब की लत अब
तुझको लेकर कहाँ तलक जाती

मेरी राहों में काॅंटे हैं लेकिन
मेरी मंजिल सदा फ़

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