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आँखनि की कजरारी कटारि पै, घूँघट ढाँकि करी चतुराई l
फूलन कंचुकी धारि हिये, अरू सारी पराग के पुष्प जड़ाई l
छीन-कटि पै पलाश के बंध, औ पैजनि साजि, चली इतराई l
शंभु कौ योग डिगायौ तबै, जब मोहन मोहनियाँ बनि आई ll
-ब्रजेश
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