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बुत ए जज़्बात का गर मुझको सहारा होता,
मैं उन्हें गैरों से कुछ ज्यादा ही प्यारा होता ।
जो उनकी रूह, मेरी रूह की कुछ सुन पाती,
तो मेरे दर्द से दिल उनका भी हारा होता ।
ये यतीम अश्क जो आँखों से बह गए यूँ ही,
उन्हें भी सीने और दामन का सहारा होता ।
तुमने औरों की बेवफाई के बदले का कहर,
यूँ मेरी पाक वफा पर ना बरपाया होता ।
क्यूं इस कदर मेरे एहसास को बदनाम किया
पाक रखते तो यादों ही से गुजारा होता ।
आज बस यूं ही कुछ उदास से बैठे हैं हम,
साथ होते जो तुम, तो क्या ही नजारा होता ।
तुम्हारी तुमसे ही शिकायतें करते रहते,
तुम्हें खुद ही का गुनहगार बनाया होता ।
बुत-ए-जज़्बात - Cupid
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