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कुछ ख्वाईशें अधूरी सी हैं,
कुछ रास्ते बेमतलब से।
मंजिल तो है पर सब धूमिल सा,
अनजाने राहों पर बस चल पड़े हैं ।
मिलेगी एक दिन वो मंजिल मुझे
एतबार हैं उस हौंसले का
वक़्त ने जिसपे चलना सिखाया है
जुनून के कंधों पे चल पड़े है
माना ये डगर कठिन है तो क्या हुआ
मिलेगी रोशनी पता है मुझे
अंधकार के दामन से कही दूर
अधूरे ख्वाबों को सच कर लेंगे तब
सूरज के किरणों के साथ जगेंगे तब।
- भवानी शरण।
कुछ रास्ते बेमतलब से।
मंजिल तो है पर सब धूमिल सा,
अनजाने राहों पर बस चल पड़े हैं ।
मिलेगी एक दिन वो मंजिल मुझे
एतबार हैं उस हौंसले का
वक़्त ने जिसपे चलना सिखाया है
जुनून के कंधों पे चल पड़े है
माना ये डगर कठिन है तो क्या हुआ
मिलेगी रोशनी पता है मुझे
अंधकार के दामन से कही दूर
अधूरे ख्वाबों को सच कर लेंगे तब
सूरज के किरणों के साथ जगेंगे तब।
- भवानी शरण।
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