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जब अज्ञेय की दृष्टि मुझ पर पड़ी ?
मैं भी उसी चूहा दौड़ में शामिल हुं
जिस दौड़ के लिए सारी भीड़ जमा हो रखी है ,
कहीं पहुंचना चाहती है
मंच पर , सम्मान पत्र , टॉफी में ,
टीवी की सुर्खियों में ,
न्यूज़पेपर के प्रथम पृष्ठ पर,
देश विदेशों की भीड़ में
मैं भी उसी चूहा दौड़ में शामिल हूं ,
जिस दौड़ में मैं की पूरी संरचना है व्यापारी पन है
किसी को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला
तो किसी को पदम श्री
किसी को खुशी तो किसी को दुख
मैं इस तरह की चूहा दौड़ में शामिल हूं,
जहां competitor , competition
जहां दूसरे को गिरा कर आगे बढ़ा जाता है
क्या ऐसी चूहा दौड़ में ऑर्गेनिक जीवन घट सकता है समस्त मानव में ?
यह अज्ञेय की दृष्टि जाने !
भावना कुमारी व्यास
21/4/2023
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