
सपने में मेरे कॉल प्रियसी की आई थी
फफक फफक कर वह रो पड़ी थी
बोली माफ करना पियाजी
मैं आपसे बात नहीं कर पाई थी
आंख तो मेरी भी उस रात भर आई थी
मैंने भी बोल दिया प्रियसी को
तुम क्या जानो
तुम्हारे बिन कैसे मैंने रातें बिताई थी
मैं कैसे करता कॉल तुमको
मना जो तुमने कर दिया था
कैसे बताऊं मैं तुम्हें
कैसे निकले दिन मेरे
कैसे मैंने रातें बिताई थी
सपने में मेरे कॉल प्रियसी की आई थी
उस रात वह मेरे से जी भर के बतलाइ थी
वह बोली पिया जी
सुबह शाम आपके नंबर पर ही
उंगलियां मेरी रहती थी
मजबूर थी मैं ..
नंबर आपका डायल करते ही
उंगलियां मेरी कांप जाती
बात नहीं मैं आपसे कर पाती थी
मैं भी प्रियसी तुम्हारी कॉल के इंतजार में
फोन को देखते देखते आंखें मेरी पथरा गई
तुम्हारा कॉल ही मुझको तरसाता था
कैसे बताऊं मैं तुम्हें
तुम्हारे बिन कैसे कटे दिन
कैसे कटी रातें मेरी
आवाज तुम्हारी मैं सुनने को तरस गया
सपने में मेरे कॉल प्रियसी की आई थी
प्यार से जब वह बोली पिया जी
आंख मेरी भर आई थी
वह बोली जीना सीखो
मेरे बिना पिया जी
मजबूर हूं मैं ..
तुम्हारी नहीं हो सकती
जीना तो दूर है प्रियसी
मुझे एक सांस भी मंजूर नहीं है तुम्हारे बिना
सुनकर वह मेरी बातें
फफक फफक कर रोपड़ी
बड़ी मुश्किल से उस रात
मैंने उसको समझाया था
चिंता मत करो प्रियसी
ईश्वर पर विश्वास रखो
सपना मेरा वह भोर वाला था
सच होगा सपना मेरा
निसंदेह हम एक होंगे
सपने में मेरे कॉल
प्रियसी की आई थी
फफक फफक कर
वह रो पड़ी थी
आंख तो मेरी भी
उस रात भर आई थी
~भरत सिंह
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