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ढूंढता हूँ मैं तुझे
सावन की हर बरसात में
बिना तेरे तो सावन भी
जेठ की दुपहरी सा
सुनता हूं मैं तुझे
कोयल की हर कूक में
बिना तेरे तो कोयल भी
कौवे जैसी लगती है
ढूंढता हूं मैं तुझे
गुलाब के हर फूल में
बिन तेरे ओ बेदर्दी
फूल भी कांटे जैसा चुभता है
घर में वह झूला हमारा
बिन तेरे वह रोता है
ढूंढता हूं मैं तुझे
बसंत के हर मौसम में
बिन तेरे ओ बेदर्दी
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