विरह की अग्नि's image


बिंदी माथे पे सजाकर कर लिया सोलह श्रृंगार ।

प्राणप्रिय आपकी राह में बिछाई पुष्प वह पगार ।।

शय्या पर भी चुनट पड़ी बोले सारी सारी रात ।

नींद भी नहीं आ रही  जगन मिलन की बात ।।

विरह वेदना तन को जलाएं नहीं कोई उपचार ।

प्राणाधार के साथ में मेरे जीवन का हैं आधार ।।

मन की यह यन्तणा क्या बताऊं सजाना आज ।

ओष्ठ चंचल चल रहे , सारंगी बिखरे तय साज ।।

क्षीर - क्षीर की खीर भी बनाई आपकी अबला ।

राह चलते आज मिली थीं एक कुंव

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