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रसाल छंद "यौवन"

Basudeo AgarwalBasudeo Agarwal August 8, 2022
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रसाल छंद


यौवन जब तक द्वार, रूप रस गंध सुहावत।

बीतत दिन जब चार, नाँहि मन को कछु भावत।।

वैभव यह अनमोल, व्यर्थ मत खर्च इसे कर।

वापस कबहु न आय, खो अगर दे इसको नर।।


यौवन सरित समान, वेगमय चंचल है अति।

धीर हृदय मँह धार, साध नर ले इसकी गति।।

हो कर इस पर चूर, जो बढ़त कार्य बिगारत।

जो पर चलत सधैर्य, वो सकल काज सँवारत।।


यौवन सब सुख सार, स्वाद तन का यह पावन।

ये नित रस परिपूर्ण, ज्यों बरसता मधु सावन।।

दे जब तक यह साथ, सृष्टि लगती मनभावन।

जर्जर जब तन होय, घोर तब दे झुलसावन।।


कांति चमक अरु वीर्य, पूर्ण जब देह रहे यह।

मानव कर तु उपाय,

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