
सुन साहित्य, थोड़े दिनों की बात है
दूर खुद को तुझ से मुझे आज कर जाने दे
हां, बची जिंदगी तेरे साथ ही गुजारनी है
थोड़े बहुत जख्म है बस उन्हें भर जाने दे ,
कुछ टूटी फटी नसे है उन्हें सिल जाने दे
कुछ बुनियादों को इरादों से मिल जाने दे ,
फिर देखेंगे ना साथ ढलता सूरज
फिर लिखेंगे ना एक नई दास्तां
फिर कही चलेंगे दूर साथ में
जहां पहुंच ना पाएगी खुद आसमां ,
रख अपने हाथों में तुम्हें दिल के पन्नों पर अपने उतारूंगा
फिर लय, छंदों और शब्दों से कविताएं बेइंतहान सवारूंगा ,
एक विश्वास, एक आस है मुझ पर
जिसके लिए तुम्हें छोड़ना पड़ रहा है
दिल की कोई ऐसी चाह नहीं है
मगर क्या करूं तुमसे मुंह मोड़ना पड़ रहा है ,
गिले-शिकवे सारे अपने मन से आज साफ कर देना
इसे कोई बड़ी मजबूरी समझ के मुझे माफ कर देना ,
सुन साहित्य, थोड़े दिनों की बात है
दूर खुद को तुझ से मुझे आज कर जाने दे
हां, बची जिंदगी तेरे साथ ही गुजारनी है
थोड़े बहुत जख्म है बस उन्हें भर जाने दे ।
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