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हम सहकर चले जो ख़लिश
बताना है मुश्किल
रातें क्या थी खामोश दिन कितने झियां
सुनाना है मुश्किल
चलें हम पैरों में कितने जफ़ा लेकर
दिखाना है मुश्किल
न ज़ाबित बने न ज़ाबिता निभा पायें हैं
जहां भी गये ज़र्ब लेकर लौट आयें हैं
हर
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