
घर से निकले हैं रावण,
रावण जलाने आए हैं
घर की सीता पर कई उठाकर हाथ ,तो कई पुरुषार्थ दिखाकर आए हैं ।
मां सीता के ये बच्चे रावण जलाने आए हैं।
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सीता विमुख नारे ,जय श्री राम लगाने आए हैं ।
हृदय में रावण ,मुख पर राम , ये रावन जलाने आए हैं।
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पितृ_मोह धृतराष्ट्र सा, ये खुद को दशरथ समझते हैं। बचपन के ये सब दुर्योधन खुद को राम समझते हैं
झोंक मिर्च आंखों में यह क्या दिखाने आए हैं ।
घर से, ये सारे रावण , रावण जलाने आए हैं।
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धर्म_परायण रावण सारे हमको धर्म सिखानेआए हैं।
ये कर्तव्य_परायण रावण सारे घर में राम दफना कर आए हैं।
ये अहंकारी रावण सारे यहां सिर्फ राम जलाने आए हैं।
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कितने शरीफ हो तुम झांको, खुद के अस्तित्व को तुम भांपो ।
लिखा क्या लिखा हुआ ह्रदय में,
इस लिपि को तुम बांचो।
ये रावण है या तुम हो ,इस बात को अब जानो।।
घर से निकले हैं......................... आजाद कवि जतिन।
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