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चहरे ये मुखौटे हैं,
मुखौटे ही तो चहरे हैं |
अन्दर का राम जला दिया,
कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं |
अपनी ही आवाज़ सुन ना पाएं,
पूर्ण रूप से बहरे हैं |
मन की नदी उफान पा ना सकी,
पर हम दिखते कितने गहरे हैं|
ये मुखौटे कोई उतार ना ले,
लगा दिए लाखों पहरे हैं |
चहरे ये मुखौटे हैं,
मुखौटे ही तो चहरे हैं |
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