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तारे जो नज़र आते हैं नभ में,
वैसी ही कहानी बनी सब में,
ऐसा लगता है मानो दुनिया कि छत पे एक विशाल आइना जड़ा हो,
बिलकुल मुझ जैसा एक मनुष्य सुदूर मेरे ऊपर खड़ा हो |
वो मनुष्य रुपी तारा है,
मेरे जीवन का सारांश सारा है |
धरा पे जितना अँधेरा नभ में उतने तारे नज़र आते हैं,
इससे पता चलता है कि एक स्थान के अंधकार से दूसरे के उजाले नज़र आते हैं|
जैसे ही सुबह हो जाती है,
तारो कि दुनिया नज़र नहीं आती है,
सिर्फ एक प्रमुख तारा सूर्य छा जाता है,
भूमंडल कि चकाचौंध को स्वयं खा जाता है |
चंद्रमा या आफताब,
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