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मैं – पतझड़ अपूर्ण क्यूं रह जाता हैं ?
वो – क्योंकि वो प्रेम का सबसे अमुलय भाग अपने साथ लाता हैं ।
मैं – कोनसा ?
वो – त्याग का ।
मैं – पर त्याग तो फरबरी ने भी किया हैं अपने हिस्से के दिनों को ..
वो – उसने केवल दिन त्यागा हैं किंतु पतझड़ ने , पतझड़ ने तो अपना सब कुछ त्यागा हैं , पतझड़ ने अपने भीतरी भाव के बोल को नग्न करके वसंत को सोपा हैं ।
मैं – तब तो अत्यधिक प्रेम वसंत के हिस्से आया और विरह पतझड़ के ?
वो – हां , पर इस बात पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकती ....
मैं – क्यूं ?
वो – मुझे तो सदेव प्रेम मिला हैं वसंत के भाती
मैं – तो
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