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इक बार की थी ख़ता, आज तलक़ कर रहे हैं भरपाई,
जिसकी थी ग़लती, उसने ही है हर क़ीमत चुकाई,
अब हैं किसी ग़ैर के वो, शरीक़-ए-हयात-ओ-लज़्ज़त,
निभायीं थीं जिनसे हमने, बर्बादी का सबब, उफ़्फ़ ये मुहब्बत !
#क़लम✍
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