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हर दफ़ा मेरी कहानी अधूरी रह जाती है,
जब उनकी याद आती है, क़लम हाँथ से छूट जाती है,
अश्क़ों को संभालकर फ़िर से क़लम उठाते हैं,
भरी महफ़िल में भी अक्सर अकेले हम नज़र आते हैं,
होगी ख़ता हमारी ही, क्यूँ क़िस्मत को कोसना,
बोल रहा हूँ, मस्तिष्क को बंद करो उसको सोचना।
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