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एक और बरस देखते हुए बीता है,
रिक्त था कलश, अब भी रीता है,
कैसे बसाऊँगा किसी और को मन में,
वो जो मुझमें है, वो भी तो मुझसे ही जीता है।
#क़लम✍
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एक और बरस देखते हुए बीता है,
रिक्त था कलश, अब भी रीता है,
कैसे बसाऊँगा किसी और को मन में,
वो जो मुझमें है, वो भी तो मुझसे ही जीता है।
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