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ना है कोई आश्नां ना जानी है मेरा ना रक़ीब है तू

ऐ अजनबी फिर ये बता क्यों मेरे इतने करीब है तू 


सादिक जज्बों की पाक मोहब्बत ठुकरा दिया तूने

ऐ बेवफा तू है बहुत खूबसूरत पर बदनसीब है तू 


तेरे मेरे दरमियां रहा कुर्बत का लम्हा भी फासलों सा

पर दूरियों में भी रहे जो करीब मेरा वो हबीब है तू 


मिला मुझ मकबूल को तेरी बेवफाई का अकूत गंज 

ये इल्म कहां जमाने को जो कहता मुझे गरीब है तू


✍मक़बूल_कटनीवाला

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