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ना आस मे, ना पास मे,
ना दुर उस आकाश मे,
ना दिन मे ना ही रात मे,
ना संगीयो के साथ मे,
ना धुप, ठंडी छांव मे,
ना बदलियो बरसात मे,
ना मंदिर ना मजार मे,
खोजता हु आज तुम्हे,
खुद के भीतर झांक के।
"आशुतोष"
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