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सपनों की मंजिल


देखे थे सपने हकीक़त से वास्ता न था

देखे साकार हो ऐसा कोई रास्ता न था


दिन गुजरे प्रतीत हुआ एक पथ

जाने को जहाँ कोई रास्ता न था


साकार करने को जागी उमंगे अंतर्मन में

पर ह्रदय से उसका कोई वास्ता न था


ले दृङ संकल्प चल पड़े उसी ओर

अभी तक जहाँ कोई रास्ता न था


चलते गये रुके न कोई पड़ाव पर

जहाँ हौसलो से कोई वास्ता न था


दिखा एक ऐसा विंदु जो कोई मंजिल

तक मंजिल पहुचने कोई रास्ता न था


दीप्त हुए सुदूर टिमटिमाते सितारे

जिसका लक्ष्य से कोई वास्ता न था


बना-बना चलते गये रास्ता उसी ओर

पा लिया लक्ष्य जहाँ कोई रास्ता न था


सभी साकार हुए सपने उसी पथ पे

जहाँ हकीकत से कोई वास्ता न था

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