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लोकतंत्र से चुना मनुष्य
राज्य नरेश कहलाता है
ब्रम्हा खुद को समझ वो
राज्य बिधाता हो जाता है
प्रजा को वो तुच्छ समझ
अपने ही मन की करता है
भले बुरे का फर्क न पड़ता
अपने आका का जी भरता है
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